India after covid:आत्मनिर्भर भारत अभियान&opportunities for india

             देश की प्रवर्तमान समय में जब देश और दुनिया महामारी से गुजर रही है तब प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया 'आत्मनिर्भर भारत'की मुहिम वास्तव में बहुत ही सम्मानजनक स्थान रखती है।आखिर देश के प्रधानमंत्री को क्यो जरूरत पड़ी इस संकट की घड़ी में आर्थिक बात को जोड़ने की?जरूरत थी क्योंकि आज भारत के अर्थतंत्र को ही 'Made in China' का लेबल लग गया है।देश के कंप्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र का 25 % हिस्सा हम चीन से आयात करते है।2015 से लेकर अबतक केवल चीन की Shaomi कंपनी के माध्यम से ही देश के टेलीफोन का 18% हिस्सा हमने उनके आगे मानो सोने की थाली में धर दिया है।इण्डस्ट्री में उतपादक साधन में काम मे आनेवाली 25% हिस्से की मशीनरी केवल चीन से आयात की जाती है।तमिलनाडु के कई फटाकों के उत्पादन में लगे 8,00,000 लोग बेकार हो गए जब चीन ने उसमे हस्तक्षेप किया।ये तो सिर्फ एक उदाहरण है क्योंकि ऐसे तो कई उद्योग चीन के हस्तक्षेप के कारण बेकार हो गए और लाखों की तादाद में लोग बेकार हो गए।
              इस समस्या का हल में कहीं न कहीं हमारे अतीत में जाकर खोजना होगा जब भारत सम्पूर्ण दुनिया के अर्थतंत्र का केंद्र था। मौर्य साम्राज्य के समय भारतीय अर्थतंत्र शिखर पर था।सत्तरवीं सदी के उतरार्ध और अढारवीं सदी के अंत मे औरंगजेब के द्वारा 45 करोड़ का कर इकट्ठा किया जाता था,जब तत्कालीन समय मे फ्रेंच द्वारा लिया गया कर 5 करोड़ से ज्यादा नही था।शशि थरूर ने 'An era of darkness' में लिखा है कि भारत मे सभी उद्योग में इतनी आत्मनिर्भरता थी कि विश्व के कुल उत्पादन में 18℅ हिस्सा सिर्फ भारत का था।खेती,कापड, रेशम,हस्तकला जैसे सभी क्षेत्र में भारत सर्वोच्च था।फिर अंग्रेज सरकार के कारण भारत 18 वीं सदी की 'औद्योगिक क्रांति' को चूक गया और 200 साल की गुलामी फिर अपनेआप में ही इति'ह्रास' है!
              हालांकि ये 'आत्मनिर्भर' शब्द चुनने में अच्छा लगता है,tik tok जैसे एप्लीकेशन को चीन के ही oppo या वीवो जैसे फ़ोन का इस्तेमाल करके कोचना अच्छा लगता है,स्वदेशी की बाते करना अच्छा लगता है!जमीनी हकीकत बहोत ही दूर है।आज़ादी के बाद भारत ने ऐसी कोनसी पैटर्न या आविष्कार दिया जिससे भारत का डंका दुनिया मे बजे?ऐसे कितने 'स्पेशल इकनोमिक ज़ोन'(SEZ) का विकास किया जो विदेशी कंपनियों को यहा ला पाए?भारतीय युवाओके 'स्टार्ट अप' पर या 'सोच' को जमीन से जोडने का काम कितनी तेजी से किया गया?जवाब बहोत ही निराशाजनक है और यही से हम सबको 'आत्मनिर्भर भारत के लिए भविष्य में हम कैसी राह चुन सकते है?'-इस बात का ख्याल आता है।
1. हमे देश मे कार्यरत लघु उद्योगों को प्रोत्साहित करना होगा और उससे जुड़े सभी उत्पादन को लोगों तक पहुंचाना होगा और साथ मे ही जनमानस में भी 'Made in India' का महत्व लाना होंगा।देश मे उत्पादित खादी हो या गृहिणियों के द्वारा उत्पादित पापड़,हस्तकलाए को लोगो तक पहुंचाना होंगा।
2.देश के औद्योगिक एकमो को बिजली,पानी और ट्रांसपोर्ट जैसी सुविधा मुहैया हो यह देखना होंगा,उसीके साथ ही ये एकम भ्र्ष्टाचार और अफसरशाही का भाग न बने इसलिए सरकार को भी इस और कड़े निर्देश देने होंगे।
 3.देश मे खड़े किए जा रहे 'स्पेशल इकनोमिक ज़ोन'(SEZ) पर विशेष ध्यान देकर सरकार को उसे और बढ़ाना होगा और उद्योगों के स्थापन में और सरलता लानेका काम करना होंगा।
 4.देश के युवाधन का लाभ लेना चाहिए और 'स्टार्टअप' जैसे लक्ष्यों को पूरा करने में उसकी मदद करनी चाहिए,जिससे युवा की 'सोच' सोच न रहकर विशाल औद्योगिक एकम का आकार ले।ये देखना भी हमारा ही काम है। 5.जब कोई भी चीज सस्ते दाम पर हम तक पहुंचेगी तो 'psychologycally' हम वही बाहर से आयाती चीज खरीदने पर विवश बनेंगे,जिसमे सरकार को आयाती चीज-वस्तुओं पर ज्यादा कर डालकर उसे मार्केट में लाना होंगा।जिससे ग्राहक देश मे उत्पादित वस्तु खरीदने में ध्यान दे और देशमे लघु उद्योग के एकम चीन की जायंट कही जाने वाली कंपनियों के आगे टिक सके। सरकार या नागरिक ही केवल 'आत्मनिर्भर' भारत के सपने को आगे नही ले जा सकते उसके लिए दोंनो के समन्वय की भी जरूरत है।
       अमेरिकन प्रमुख डोनाल्ड ट्रंप ने इस बात को रखा था कि 'इस महामारी के बाद विश्व के परिप्रेक्ष्य में काफी राजनैतिक और आर्थिक बदलाव की संभावना है'भारत इसी समय का लाभ उठाकर आगे निकल सकता है।(महासत्ता बन सकता है ऐसा बिल्कुल नही कहूंगा,क्योंकि उसके लिए काफी आगे जाना होंगा।)

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