खुशी होती है आज इतने सालों के बाद भी अगर हम उन्हें 'वीर' कहकर बुलाते है फिर भी वह लोग डर जाते हैं और डरना वाज़िब भी है क्योंकि उनके हिसाब से तो इतिहास मतलब नेहरू,इतिहास मतलब इंदिरा,इतिहास मतलब राजीव।लेकिन आज जब 'वीर' सावरकर को भी वह लोग भुलवा नहीं पाये तो डरना बिल्कुल वाज़िब है।परिवारवाद की जो राजनीति 70 सालों से चल रही थी उसकी मानसिकता बदलने में वक्त तो लगेगा।उन्हें भुलावाने की तो आपने बहोत कोशिश कर ली,लेकिन लोगों के दिल से कैसे निकलोगे?नेहरू को भारतरत्न(1955) और वह भी खुद ही ने खुद को दिया हुआ।इंदिरा को भारतरत्न(1971) और जिनके नेतृत्व में दिल्ली के सड़कों पर 2700 शिखो को मौत के घाट उतार दिया गया वह राजीव को भी भारत रत्न(1991),एक ही परिवार में तीन-तीन भारत रत्न।मालूम है आप अभीभी यही कारवाँ चलाना चाहते है क्योंकि आपके हिसाब से तो वीर सावरकर और भगतसिंह,सुखदेव और राजगुरु का तो देश की आज़ादी में कोई योगदान ही नही था।और अगर सवाल माफीनामे पर है ही तो सुन लीजिए-गांधी,नेहरू या यहाँ तक कि सरदार को जब भी कारावास भेजा गया तो 'विशेष व्यक्ति' के रूप में भेजा गया।आप माफीनामे पर सवाल कर सकते है लेकिन सावरकर को मिली जेल यातनाओं पर नही!
वीर सावरकरजी को जन्म जयंती पर शत शत नमन।
वीर सावरकरजी को जन्म जयंती पर शत शत नमन।
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