भारतीय शिक्षण पद्धति-अतीत,वर्तमान और भविष्य
नमस्ते!!!!
आज में ध्रुविल धोराजिया अपनी आवाज रखु उससे पहले में उस आवाज को नमन करना चाहूंगा जिस आवाज ने 126 साल पहले 11 सितम्बर 1893 में अमेरिका के शिकागो की विश्व धर्म सभा मे हिन्दू संस्कृति को सम्मान दिलाने में मदद की थी।वैसे भारतीय युवाओं के आदर्श स्वामी विवेकानंद जी को में नमन करता हूँ।
आज की इस प्रतियोगिता में मेरा विषय रहेगा-भारतीय शिक्षण पद्धति-भूत, वर्तमान और भविष्य।आज इस विषय पर बात करना आवश्यक इसलिए है क्योंकि हमारी राजधानी दिल्ली की प्रख्यात जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में कुछ युवाओं ने मिलकर थोड़े समय पहले ही भारत के टुकड़े करने की बात को प्रोत्साहन दिया,यह आवाज किसने उठाई??और क्यो उठाई उसके भीतर में नही जाना चाहता लेकिन वह आवाज उठी थी और युवाओं के द्वारा ही उठाई गई थी,इसलिए इस मुद्दे पर बात करना अधिक आवश्यक है।इस विषय पर बात करना इसलिए आवश्यक है क्योंकि आज कही न कही हमारे देश के वीरो को भुलाकर इतिहास को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।आज इस मुद्दे पर बात करना आवश्यक इसलिए है क्योंकि आज कही न कही देश मे हमारी संस्कृति के विरोध में एक वातावरण खड़ा करने की कोशिश की जा रही है।
जब में भारतीय शिक्षण पद्धति के भूतकाल की बात करता हूँ तो सबसे पहले में यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि में मैकोले की लादी गई शिक्षण पद्धति की बात नही,लेकिन वास्तव में भारतीय शिक्षण पद्धति की बात करता हूँ।हाँ, मित्रो में बात करना चाहता हु,हमारी गुरुकुल परम्परा की।वही गुरुकुल परंपरा जिसमे एक ही आश्रम में कृष्ण जैसे सम्पन्न और सुदामा जैसे गरीब छात्र एक साथ बैठकर शिक्षा लेते थे।वही गुरुकुल परंपरा जिसमे राम को भगवान राम बनाया जाता है और राम राज्य की नींव रखी जाती है।वही गुरुकुल परंपरा जिसमे मात्र पैसे कमाने का शिक्षण न देकर जीवन के सही मूल्यों के बारे में पढ़ाया जाता था।
मैकोले के नाम लेने की आवश्यकता इसलिए रहती है कि कही न कही हमे वही से भारतीय शिक्षण पद्धति शरू होने का भास होता है।जब भारत मे यह शिक्षा पद्धति दाखिल की गई तब मैकोले द्वारा कहा गया था कि ' अगर हम भारत मे इस प्रकार की शिक्षा पद्धति दाखिल करंगे तो अगले के सालों तक यह भारतीय प्रजा हमारी गुलाम रहेगी।' और यकीन मानना आज यही हो रहा है।।।।हमे पढ़ाया जाता है कि भारत में 'भाग करो और राज करो' की नीति को अमल में लाने वाला वोरन हेस्टिंग्स नही,बल्कि वह लार्ड वॉरन हेस्टिंग्स था,भारत को गुलाम रखने वाले वाइसरॉय के आगे आज भी पाठ्यक्रम में लार्ड लगाया जाता है।वास्तव में अंग्रेजी में 'लॉर्ड' शब्द भगवान के आगे लगता है,जैसे कि लार्ड राम,लार्ड कृष्ण।यह हमारी गुलाम मानसिकता को प्रदर्शित करती है।
में राजनीति शास्त्र का विद्यार्थी हु,मुजे आज भी प्लेटो, एरिस्टोटल और मैकियावेली जैसे तत्वचिंतको को पढ़ाया जाता है,भारतीय ऋषियो के भव्य विरासत होंने के बावजूद यह क्रम चलाया जा रहा है।कौटिल्य जैसे महान अर्थशास्त्री को भुलाकर हमे बताया जाता है कि अदम स्मिथ अर्थशास्त्र के पिता है।यह बात बहुत ही शर्मनाक और लज्जाजनक है।यह भारतीय शिक्षण पद्धति की वर्तमान हालात है।
स्वामी जी की भाषा मे अगर बात कहु तो शिक्षा पध्दति क्या है?शिक्षा वह है जो साधारण व्यक्ति को जीवन संग्राम में समर्थ बनाये,मनुष्य में चरित्र-बल,पर हिट भावना और सिंह के समान साहस लाये ,वही शिक्षा है।हर एक विद्यार्थी को हमारी हिंदी,हिन्दू और हिंदुस्तान पर गर्व हो।जिस शिक्षा पद्धति से अच्छे व्यक्ति का निर्माण हो,सोसाइटी का निर्माण हो,समाज का निर्माण हो और देश का निर्माण हो ऐसी शिक्षा पद्धति की हमे आवश्यकता है। भारत नवनिर्माण नही,पुनः निर्माण चाहता है।
धन्यवाद।
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